Tuesday, September 16, 2008

अमेरिका का भारत प्रेम और परमाणु करार

मुश्किलों में फंसे अमेरिकी साम्राज्‍यवादियों का भारत प्रेम देखकर हमारे देश के बहुत सारे लोगों की आंखें डबडबा गई हैं। चीन के मुकाबले में खड़ा होने के लिए हमारे देश के हुक्‍मरानों को अमेरिकी सहारे की जरूरत है और अमेरिका को अपने आर्थिक संकट से उबरने के लिए किसी ऐसी अर्थव्‍यवस्‍था की दरकार है जहां उसके पूंजीपति निवेश कर सकें। अगर अमेरिका परमाणु करार के इतना पीछे पड़ा है तो इसका एकमात्र कारण यह है कि परमाणु करार के बाद ऊर्जा क्षेत्र में और उसके बाद लगने वाले उद्योगों में भारी पैमाने पर अमेरिकी कंपनियों की तरफ से निवेश होना है। अमेरिकी अर्थव्‍यवस्‍था इन निवेशों को अपने संकट के समाधान के रूप में देख रही है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका चीन, रूस और यूरोपीय संघ की बढ़ती आर्थिक ताकत से भी चिन्तित है और उसे एशिया में एक भरोसेमंद कनिष्‍ठ पार्टनर की आवश्‍यकता है।

हमारे देश के उद्योगपति भी इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहते। अमेरिका की मजबूरी को समझते वे अपने लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा बटोरने लेना चाहते हैं। पूरी दुनिया की बंदरबांट में आज भारतीय पूंजीपति भी दुनिया भर के पूंजीपतियों के साथ होड़ करने लगे हैं और दुनिया भर की सरकारें विश्‍व के मंच पर अपने अपने देश के पूंजीपतियों की पैरवी कर रही हैं। और यही उनका असली काम भी होता है।

भारतीय पूंजीपति वर्ग बहुत सधे हुए कदमों के साथ दुनिया के रंगमंच पर उभर रहा है। आजादी के पहले कांग्रेसी नेतृत्‍व में दबाव और समझौते की नीति का पालन करते हुए और देश के विशाल उत्‍पादक वर्ग के श्रम का क्रूर दोहन करते हुए उसने अपनी तिजोरियां भर ली हैं और दुनिया भर के पूंजीपतियों के साथ दो-दो हाथ करने के लिए मैदान में उतर पड़ा है। हमारे देश के निवासी देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत होकर इन पूंजीपतियों का यशोगान कर रहे हैं लेकिन उन्‍हें इसका अंदाजा नहीं है कि पूंजीवाद का यह बौना राक्षस खुद उनका ही खून चूस रहा है।

इतिहास पर गौर करें तो पायेंगे कि अमेरिका के प्रेम में फंसने वाले देशों की बड़ी बुरी गति हुई है। इराक, अफगानिस्‍तान, पाकिस्‍तान लातिन अमेरिका के तमाम देश इसका उदाहरण हैं। हालांकि भारत का शासक पूंजीपति वर्ग दुनिया के सबसे चालाक शासक वर्गों में से एक है और वह काफी आगा पीछा देखने के बाद ही कोई फैसला करेगा लेकिन आम जनता को इन तमाम करारों से कुछ भी नहीं मिलने वाला। परमाणु ऊर्जा से उनके घर का बल्‍ब नहीं टिमटिमाएगा। लेकिन भारत के बड़े पूंजीपतियों को इससे जरूर काफी फायदा होगा।

3 comments:

दीपक कुमार भानरे said...

सही लिखा है आपने .
अमेरिका बिना कोई निजी स्वार्थ के कोई मदद करता है क्या .

Shiv said...

बहुत बढ़िया पोस्ट है.
इट्स आल अबाउट मनी हनी....:-)

Kapil said...

sahi likha hein. lekin kam kyon likhte hein? ummeed hein agli post jald aayegee.