इतिहास ने स्वयं को दोहराया तो जरूर पर जहां त्रासदी संहारक थी वहीं प्रहसन इतिहास की एक शर्मनाक प्रतीक घटना बनकर सामने आया है। 26 साल पहले हुई त्रासदी को अंजाम देने वालों को एक लंबी, उबाऊ और कष्टप्रद नौटंकी के बाद सजा के नाम पर तोहफे बांटे जा रहे हैं। 26 साल पहले इंसानियत रोई थी, आज वो शर्मसार है।
क्या लिखूं कुछ सूझ नहीं रहा है। पड़ोस के घरों से टीवी पर चल रहे किसी लाफ्टर शो के जजों और दर्शकों की अर्थहीन हंसी सोचने की प्रक्रिया को बाधित कर रही है। हां इस शर्मनाक घड़ी में भी लाफ्टर शो देखने वालों की कमी नहीं है। गनीमत है कि कोर्ट का यह फैसला आईपीएल के बीत जाने के बाद आया है वर्ना मीडिया वाले भी इस मुद्दे पर इतना समय जाया न करते।
15000 लोगों को कत्ल करने वाले को जनता के प्रतिनिधियों ने सरकारी हेलिकॉप्टर से भगा दिया। जनता की फिक्र करने वाली कोर्ट ने 26 साल तक भुक्तभोगियों को घाट-घाट का पानी पिलाया। आज एक तरफ जहां अपराधियों को प्रसाद बांटे जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उसी पार्टी की सरकार न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल तैयार कर रही है जिसमें भविष्य के ऐसे अपराधियों को हल्के में छोड़ देने के लिए कानूनी उपाय किए जा रहे हैं। एक जनप्रतिनिधि (कानून मंत्री) दिलासा दे रहे हैं कि केस बंद नहीं हुआ है, वहीं दूसरी तरफ से यह भी कह रहे हैं कि सरकार ने एंडरसन मामले में सीबीआई पर दबाव नहीं डाला था। 19 साल बाद रुचिका को तो न्याय लगता है मिल गया, पर भोपाल के लाखों लोगों को अभी लंबी लड़ाई लड़नी है।
अचानक जोरदार हंसी से पूरा मुहल्ला गूंज उठता है। किसी प्रतिस्पर्धी ने एक द्धिअर्थी चुटकुला सुनाया है। सेंसर बोर्ड के अलावा बाकी दुनिया को इस चुटकुले का एक ही अर्थ समझ में आएगा। इस चुटकुले पर सबसे जोर से हंसने वाला भी एक जनप्रतिधि है। ऐसा लगता है कि उसने सारी दुनिया की हंसी पर कब्जा कर लिया है और हंसे चले जाता है। उसकी हंसी में कभी बेशर्मी तो कभी अश्लीलता झलकती है। जनता के पास हंसने का कोई कारण ही नहीं बचा है। इसलिए आजकल हंसी को व्यायाम बना दिया गया है। एक ज्ञानी कहता है रोज इतनी देर हंसा करो (चाहे हिरोशिमा पर बम गिरे चाहे भोपाल में गैस रिसने से लोग मरें) नहीं तो फलाने-फलाने रोग हो जाएगा। कुछ लोग डर के मारे हंसते हैं। वे हंसी अफोर्ड कर सकते हैं, जनता नहीं कर सकती। जनता तो सिर्फ अपने ऊपर हंस सकती है। जनता केवल बेबसी की हंसी हंस सकती है, अपना चू..या कटते हुए देख कर हंस सकती है।
आज नीरो होता तो शायद भोपाल के किसी घर में टीवी पर लाफ्टर शो देख रहा होता।
1 comment:
वैसे भी आज बांसुरी बजाने वाले ही नहीं बचे
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