Thursday, June 17, 2010

यूनियन कार्बाइड (भोपाल गैस कांड) और ग्रेजि़यानो (सीईओ की मौत) - एक संक्षिप्‍त तुलनात्‍मक अध्‍ययन।

घटना
यूनियन कार्बाइड - दिसंबर 2-3, 1984 की रात को अमेरिकी कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी (यू सी आई एल) के प्‍लांट से जहरीली गैस के रिसाव से लगभग 20,000 लोगों की मौत और लाखों लोग प्रभावित।

ग्रेजि़यानो - ग्रेटर नोएडा स्थित ग्रेजियानो कंपनी के मजदूरों का आंदोलन और इस दौरान सीईओ ललित किशोर चौधरी की मौत।


घटना का कारण
यूनियन कार्बाइड - मुनाफे की हवस में शीर्ष प्रबंधन की जानकारी और आदेश पर बरती गई हर प्रकार की लापरवाही। निर्देशों की अवहेलना करते हुए बहुत अधिक मात्रा में अत्‍यंत जहरीली गैस का भंडारण। गैस को ठंडा करने वाले यंत्र का लंबे समय से बेकार पड़े रहना। चेतावनी देने वाले यंत्रों का काम न करना। यानी कि सारी की सारी जानबूझकर की गई लापरवाहियां।

ग्रेजियानो - अमानवीय कार्यस्थितियों, कम वेतन, छंटनी, प्रबंधन और उसके द्वारा पाले गए गुण्‍डों द्वारा गाली-गलौच और यूनियन बनाने की मांग पर मजदूरों ने आन्‍दोलन शुरू किया। कंपनी और ठेकेदारों के गुण्‍डों ने मजदूरों पर जानलेवा हमला किया (आजकल ये सभी उद्योगों में आम बात है)। सरिया, डंडों से मजदूरों की पिटाई की गई, सुरक्षा गार्डों ने फायरिंग भी की। लगभग 35 मजदूर गंभीर रूप से घायल हुए। पुलिस का दस्‍ता इस बीच पास में ही खड़ा रहा और प्रबंधन के इशारे पर कोई कार्रवाई नहीं की क्‍योंकि प्रबंधन अपने गुण्‍डों से मजदूरों को पिटवाकर अपनी ताकत दिखाना चाहता था। इस दौरान ग्रेजियानो के सीईओ ललित चौधरी को सिर पर चोट लग गई जो उनकी मौत का कारण बनी। क्‍या हुआ, कैसे हुआ यह किसी ने नहीं देखा। सीईओ की पत्‍नी के अनुसार ललित चौधरी की मौत व्‍यावसायिक प्रतिद्वंद्विता का नतीजा थी, मजदूरों के आंदोलन से उसका कोई संबंध नहीं था।


घटना के बाद की कार्रवाई
यूनियन कार्बाइड - कंपनी के मालिक वारेन एंडरसन को वीआईपी सरकारी मेहमान की तरह सरकारी हेलिकॉप्‍टर से भगा दिया गया। तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री ने उस समय कहा कि हम किसी को भी परेशान नहीं करना चाहते हैं। कुछ अखबारों ने लिखा कि यह मजदूरों की करतूत थी। लगभग 26 साल तक कानूनी नौटंकी जिसमें जघन्‍य आरोपों को मामूली लापरवाही में तब्‍दील कर दिया गया। सजा के नाम पर प्रमुख आरोपियों को 2-2 साल की सजा हुई। सजा के साथ ही साथ जमानत भी थमा दी गई।

ग्रेजियानो - सीईओ की मौत के बाद सरकार से लेकर प्रशासनिक तंत्र और अदालत तक और उद्योगपतियों की संस्‍थाओं से लेकर मीडिया तक सबने एकसाथ मजदूरों पर हल्‍ला बोल दिया। इस मुद्दे पर सरकार ने वरिष्‍ठ नौकरशाहों और पूंजीपतियों की एक कमेटी बनाई। पुलिस ने मजदूरों को ढूंढ़-ढूंढ़कर पकड़ा, बर्बर ढंग से पीटा और 137 मजदूरों को हिरासत में लिया। 63 पर सीईओ की हत्‍या करने का आरोप लगाया गया। बाकियों पर बलवा करने और शांति भंग करने का आरोप लगाया गया। इस बार न्‍यायालय ने बड़ी मुस्‍तैदी से मजदूरों की जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया। मजदूरों के साथ इंसानों जैसा बर्ताव करने का अनुरोध करने की हिमाकत करने के चलते तत्‍कालीन श्रम मंत्री ऑस्‍कर फर्नांडीज को अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा। गरीब मजदूरों के परिवार सड़क पर आ गए। मीडिया को न पहले उनकी चिंता थी न अब है।

यह केवल दो घटनाओं से संबंधित तथ्‍यों की एक संक्षिप्‍त प्रस्‍तुति है: निष्‍कर्ष निकालने का काम पाठक स्‍वयं करें।

ग्रेजियानों की घटना के बारे में अधिक विस्‍तार से जानने के लिए मेरी एक पुरानी पोस्‍ट देखें।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

मीडिया भी तो उन्हीं का है जी, जिन की सरकार है, जिन के कारखाने हैं। अब आप कहेंगे वह भोपाल के मामले में तो एंडरसन के पीछे पड़ा है। यदि वह एंडरसन का होता तो उस के पीछे क्यों पड़ता। सर जी, ऐसा है कि जिन के कारखाने हैं और सत्ता है उन में भी तो प्रतिद्वंदिता है। वे तो तभी एक होते हैं जब मजदूर एक हो कर हल्ला बोलता है। अभी मजदूर ने हल्ला नहीं बोला है वे काहे एक हों। तो मीडिया उछल कूद कर रहा है कि जिन को अब तरजीह मिल रही है उन को उखाड़ा जाए। जिन को नहीं मिल रही है उन्हें मिलने लगे। ये दो बांकों की लड़ाई है। सारा शहर वैसे ही हल्ला करे है जी।