Monday, January 26, 2009

आधी अधूरी आजादी, लूला लंगड़ा गणतंत्र।

ये कैसी आजादी है, ये किसकी आजादी है

जनता के हिस्‍से में केवल लूट और बर्बादी है।

जनवरी 1950 को आज के दिन हमारे महान देश का महान संविधान लागू हुआ। इस संविधान की महानता यह थी कि इसे देश देश के महज 15 प्रतिशत मध्‍यवर्ग, उच्‍च मध्‍यवर्ग, अंग्रेज परस्‍त जगीरदारों, जमींदारों, नवाबों, राजाओं और व्‍यापारियों के प्रतिनिधियों ने मिलकर बनाया था। उससे भी ज्‍यादा तारीफ की बात यह थी कि दुनिया भर के संविधानों से से जोड़-जुगाड़कर तैयार किया गया यह संविधान मूलत: उन्‍हीं नियमों-कानूनों पर आधारित था जो अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे थे। कल तक अंग्रेजों की चापलूसी करते आ रहे कायर-नपुंसक राजे-रजवाड़े, क्रान्तिकारियों के खिलाफ झूठी गवाही देने वाले गद्दार, जनता पर जुल्‍म करने वाले जमींदार और जागीरदार और अपने ही लोगों पर लाठी-गोली बरसाने वाली पुलिस और सेना सब पहले की तरह शासन करते रहे। लेकिन बात इतनी ही नहीं थी, हमारे महान देश की महानता तो यह थी कि देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्‍व न्‍यौछावर करने वाले क्रान्तिकारियों पर देश की आजादी के बाद भी कई वर्षों तक मुकदमें चलाए जाते रहे। शान्ति के दूत महात्‍मा गॉंधी को भी इस बात से कोई ऐतराज नहीं था।

यह आजादी मुट्ठी भर धनिकों की

लड़कर हासिल करनी होगी सही आजादी श्रमिकों की।

जैसा कि भगतसिंह ने कहा था आजादी के बाद गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेजों का शासन आ गया और जनता की बुनियादी हालत में कोई बदलाव नहीं हुआ। लूट, शोषण, बेकारी, बेरोजगारी, महंगाई, भूख, कुपोषण आजादी के ये तोहफे जनता की झोली में आ गिरे। आजादी के बाद कई वर्षों तक अपने ही देश की फौज अपने ही देश के किसानों और मजदूरों का खून बहाती रही। तेभागा-तेलंगाना, पुनप्रा-वायलार, मलाबार तक किसानों, मजदूरों का खून बहाने में नेहरू और पटेल की सरकार अंग्रेजों से पीछे नहीं रही। सार्विक मताधिकार का झुनझुना थमा दिया गया पर लोगों की चेतना उन्‍नत करने का कोई प्रयास नहीं किया गया जिसके कारण यह झुनझुना आज तक एक झुनझुना ही बना रह गया। ज्‍यों ज्‍यों भारतीय शासक वर्ग का जनविरोधी और पूंजीपरस्‍त चरित्र उजागर होता गया समाज के नैतिक और सांस्कृतिक मूल्‍यों का उसी तेजी से ह्रास होता गया। आजादी की लड़ाई के दौर में जो भी प्रगतिशील संस्‍कार और संस्‍थाएं खड़ी की गई थीं, पूंजी और बाजार ने उन्‍हें इस तरह पतित और भ्रष्‍ट कर दिया कि आज सांसदों और विधायकों की खरीद-फरोख्‍त से लोगों को हैरानी तक नहीं होती है। बल्कि हैरानी तो इस बात पर होती है कि इसके बावजूद सबकुछ चल रहा है। वैसे इसके पीछे भी कोई रहस्‍य नहीं है क्‍योंकि अगर भले ही घिसते-पिटते लेकिन अगर सबकुछ चलेगा नहीं तो आखिर लूटेंगे क्‍या। यह सबकुछ चलाते रहना भी लुटेरों की एक मजबूरी है।

मजेदार बात तो यह भी है कि विदेशी कपड़ों की होली जलाने वालों को विदेशी पूंजी से कोई ऐतराज नहीं है उल्‍टा वे तो विदेशी राज का बखान भी करते हैं और कहते हैं कि सरकार आप तो बहुत अच्‍छे थे आप चले क्‍यों गए, वापस चले आइए, अपनी पूंजी के टुकड़े हमारी तरफ उछालिए, हमें गुलामी की ऐसी आदत पड़ गई है कि हम अपनी मां को भी अंग्रेजी संबोधन से पुकारते हैं। हमारे देश की अरबों करोड़ों जनता अपने खून पसीने से आपको मालामाल कर देने को लालायित है.....प्‍लीज आइए और हमें लूटिए।

जिस विदेशी गुंडे के ऊपर उसके देश के और दुनिया भर के लोग थूकते और जूता मारते हैं हमारे देश का प्रधानमंत्री कहता है कि भारतीय उसे प्‍यार करते हैं।

राष्‍ट्रीय गर्व और राष्‍ट्रीय भावना का आलम यह है कि आज के महान दिन जिस इंडिया गेट पर देश के गौरव का बखान किया जाता है वह देश की आजादी के लिए मरने वाले सेनानियों का नहीं बल्कि अंग्रेजों की भाड़े की नौकरी करने वाले सैनिकों की याद में बनाया गया है।

हमारे महान देश की महान सभ्‍यता और संस्‍कृति के स्‍तुतिगान में महापुराण लिखे जा सकते हैं। हमें दो चार श्‍लोकों और छंदों के अलावा भले कुछ न आए लेकिन हम अपने को दुनिया का गुरु कहते हैं। हमारी दो तिहाई आबादी भूखे पेट सोती है लेकिन हम सुजलाम सुफलाम धरती के निवासी हैं। हमारे सिर पर छत नहीं है लेकिन हम चांद पर महल बनाने चल पड़े हैं। हमारे लिए नारी सीता और सावित्री है तो फिर हम उसे दहेज के लिए क्‍यों न जलाएं। हम स्‍वदेशी स्‍वदेशी भी चिल्‍लाएंगे और विदेशी बैंकों में अपनी काली कमाई भी जमा करेंगे........ और अब तो हम विश्‍व महाशक्ति बनने जा रहे हैं। और ऐसा होते ही देखना हम इतिहास के पहिए को वापस घुमाकर पौराणिक काल में न पहुंचा दें तो कहना...........बच्‍चा बच्‍चा या तो राम का होगा या किसी काम का न होगा।।।

पर ऐसा होने वाला नहीं है....इतिहास का पहिया एक बार आगे बढ़ने के बाद पीछे नहीं घुमाया जा सकता.....और जब कोई ऐसी कोशिश करता है तो वह मानवता के लिए एक त्रासदी का ही निर्माण करता है।

इसके उलट इतिहास को आगे ले जाने वाली ताकतें भी तैयार हो रही हैं। इतिहास के अंत की घोषणाएं करने वाले आज डिप्रेशन के शिकार हैं। उनकी छक्‍के छूट रहे हैं और कल तक बड़बोलापन करने वाले आज कहीं कोने में मिमिया रहे हैं।