Monday, February 16, 2009

सत्‍यम का घोटाला और नैति‍कता की दुहाई।

सत्‍यम कंपनी का घोटाला जगजाहिर होने के बाद सरकार से लेकर नियामक एजेंसियों और मीडिया तक सब के सब रामालिंगा राजू पर टूट पड़े। कल तब जिसे इंक्रेडिबल इंडिया का स्‍टार आइकॉन बताया जा रहा था उसे अचानक बदनामी के गर्त में गिरा दिया गया। सत्‍यम के घोटाले को एक असाधारण घटना करार दिया गया और राजू के कृत्‍य का अनैतिकता की श्रेणी में डाल दिया गया।

प्रश्‍न यहीं खड़ा होता है। रामालिंगा राजू ने जो किया वह अनैतिक कैसे हो सकता है। और रामालिंगा राजू न ऐसा क्‍या किया जो उनके जैसे बाकी लोग नहीं करते या अपनी औकात के मुताबिक जिन्‍हें मौका मिलता है वह नहीं करते। नैतिकता की दुहाई तो तब दी जा सकती है जब नैतिकता और अनैतिकता में कोई गुणात्‍मक भेद हो।

अगर रामालिंगा राजू पर यह आरोप लगाया जाता है कि उसने बही-खातों में हेर फेर की तो पूछा जा सकता है कि उसने कौन सा बड़ा गुनाह कर दिया। कौन पूंजीपति, व्‍यवसायी, दूकानदार, बही-खातों में हेर फेर नहीं करता। छोटे से छोटे दूकानदार से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति तक कौन टैक्‍स बचाने के लिए झूठे खर्च और हिसाब किताब में गड़बड़ी नहीं करता। अगर छोटा दूकानदार दाल और चावल में मिलावट करता है तो बड़ा पूंजीपति घटिया उत्‍पाद बनाकर मुनाफा कमाता है। इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और सत्‍यम जैसी बड़ी बड़ी साफ्टवेयर कंपनियों के मुनाफे का राज़ है उनके कर्मचारियों का भयंकर शोषण और उनकी मेहनत की लूट। सॉफ्टवेयर कंपनियों में 10-12 घंटे काम को सामान्‍य समझा जाता है और पगार 8 घंटे की दी जाती है। इन कंपनियों में कहा जाता है कि आने का समय तो तय है लेकिन जाने का समय मैनेजर और काम के अनुसार तय होता है। ओवरटाइम का कोई झंझट ये कं‍पनियां नहीं पालतीं बस आपको चाय कॉफी मिलती रहती है। चूंकि ये कंपनियां विदेशी ग्राहकों की सेवा करती हैं इसलिए मुद्रा में अंतर के कारण इन्‍हें भारी मुनाफा होता है और अपने कर्मचारियों को बाकी उद्योगों की तुलना में बेहतर पगार देने के बाद भी इनका मुनाफा जबरदस्‍त होता है। साफ्टवेयर और कॉल सेंटर में काम करने वालों की जिंदगी कोल्‍हू के बैल के जैसी होती है। जिंदगी और बाहरी दुनिया से कटे ये नौजवान बहुत कम उम्र में ही अलगाव, डिप्रेशन और अन्‍य मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

यह सब कुछ सामान्‍य माना जाता है और अनैतिक नहीं समझा जाता। राजू भी जब यह सब कर रहा था तब उसे अनैतिक नहीं समझा गया। राजू की गलती बस यही रही कि वह अपनी सीमा से बाहर चला गया और नियंत्रण खो बैठा। पर जो खुद ही अनैतिक हैं, जो खुद ही ये सारे गलत धंधे करते हैं वे राजू को किस आधार पर अनैतिक कह रहे हैं। क्‍या हमारे प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री, योजना आयोग के उपाध्‍यक्ष, फिक्‍की और एस्‍सोचैम के लोग जो राजू को अनैतिक कह रहे हैं वे यह मानते हैं कि बाकी सभी दूध के धुले हैं। वास्‍तव में सबकी सच्‍चाई सभी जानते हैं लेकिन आपसी समझदारी के नाते कोई मुंह नहीं खोलता जब तक कि समस्‍या इस हद तक न बढ़ जाए कि उसे छुपाए रख पाना संभव ही न हो सके।

असल में पूंजीवादी व्‍यवस्‍था में नैतिकता और अनैतिकता का कोई भेद नहीं होता। जो चीज मुनाफा दे वह नैतिक होती है। यहां लूट, डकैती, भ्रष्‍टाचार सब जायज है। और यह अपने दायरे में सभी को समेट लेती है। हर छोटे बड़े व्‍यवसायी को ईमान धर्म बेचकर बस मुनाफा कमाना होता है। इसलिए चूंकि हमाम में सभी नंगे होते हैं और एकदूसरे की असलियत से वाकिफ होते हैं कोई दूसरे पर उंगली नहीं उठाता। जब पानी सर से गुजरने लगता है तब किसी न किसी को बलि का बकरा बनना पड़ता है ताकि लोगों का भरोसा इस व्‍यवस्‍था में बनाए रखा जा सके। राजू के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाइयों का बस यही मतलब है कि निवेशकों का विश्‍वास भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था से टूट न जाए। सिर्फ एक राजू की वजह से लूट के इस पूरे कारोबार पर ही खतरा न मंडराने लगे। हमारे देश को चलाने वाले पूंजीपतियों और उनकी सरकार की बस यही मंशा है। नैतिकता और ईमान धर्म से तो खुद उनका दूर दूर तक का कोई वास्‍ता नहीं है।