मेहनतकश साथियो,
ग्रेटर नोएडा की ग्रेजियानो कंपनी में उठे मजदूर असंतोष की लपट ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि पूंजीवादी शोषण की चक्की में पिस रहे देश के करीब 50 करोड़ मजदूर हमेशा चुप नहीं बैठे रहेंगे। घटना के बाद देश के श्रम मंत्री तक को यह स्वीकारना पड़ा कि देश भर के मजदूरों में भीतर ही भीतर असंतोष सुलग रहा है। यह बात गौर करने लायक है कि देश के उद्योग संगठनों की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद श्रम मंत्री को अपना थूका हुआ चाटना पड़ा और उसे अपने मालिकों से माफी मांगनी पड़ी। पूंजी की चाकर इन सरकारों और मंत्रियों से भला और क्या उम्मीद की जा सकती है।
360 करोड़ रुपये का सालाना प्रोडक्शन देने वाले ग्रेजियानो के करीब 350 मजदूर एक साल से बपने हकों के लिए संघर्ष कर रहे थे। इनमें से अधिकांश पिछले 7-8 वर्षों से कार्यरत थे। मुनाफे की हवस का शिकार कंपनी मैनेजमेंट सोच रहा था कि जब बाजार में 2000-2500 रुपये पर काम करने वाले लोगों की भरमार है तो फिर पुराने मजदूरों को 6000 रुपये मासिक वेतन क्यों दिया जाये? यही सोचकर पुराने मजदूरों को निकाला जाने लगा। मजदूरों ने इसके खिलाफ श्रम विभाग, कंपनी मैनेजमेंट, जिला प्रशासन, गृह मंत्री और इटली की सरकार तक का दरवाजा खटखटाया लेकिन राजा भोज भला गंगू तेली की कहॉं सुनने वाले थे। मजदूरों की नामलेवा ट्रेड यूनियनों ने भी दलाली खाकर मालिकपरस्ती का नंगा प्रदर्शन किया।
इस तरह अपने हक की लड़ाई में मजदूर अलग-थलग पड़ गये। मौके का फायदा उठाते हुए कंपनी ने 22 सितंबर को समझौते के नाम पर मजदूरों से भविष्य में आंदोलन न करने और माफीनामा लिखने का दबाव बनाया। इंकार करने पर उन्हें कंपनी के गुण्डों ने पीटना शुरू कर दिया और इर लड़ाई में कंपनी का सीईओ मारा गया।
उसके बाद जो कुछ हुआ वह आम गरीबों और मजदूरों की पूंजीवादी न्याय और सुशासन की झूठी आस-उम्मीद को तार-तार कर देने के लिए काफी है। सैकड़ों मजदूरों को गिरु्फ्तार किया गया। देश के पूंजीपतियों, राजनीतिक पार्टियों, गली-कूचे के टटपूंजिये नेताओं और मीडिया एवं गद्दार ट्रेड यूनियन नेताओं ने मजदूरों को हत्यारा घोषित कर दिया। कहा गया चाहे जैसे भी हालात रहे हों मजदूरों को और बर्दाश्त करना चाहिए था। दुर्घटनावश हुई एक सीईओ की मौत पर इतना शोर मचाने वालों से यहॉं यह पूछा जाना चाहिए कि हर रोज काम के दौरान मरने वाले 6000 (पूरे विश्व में-ब्लागर) मजदूरों की मौत पर ये हमेशा क्यों खामोश रहते हैं?
देश के मजदूरों-मेहनतकशों को यह साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि पूंजी (मालिकों) और श्रम (मजदूरों) के बीच की इस लड़ाई में पूंजीपति और उनकी मैनेजिंग कमेटी यानी सरकार, पुलिस, कानून और गद्दार ट्रेड यूनियनें मजदूरों के खिलाफ एकजुट हैं। ऐसे हालात का मुकाबला करने के लिए मजदूर वर्ग को चाहिए कि किस्म-किस्म के चुनावबाज नेताओं और दलाल ट्रेड यूनियनबाजों का पिछलग्गू बनना बंद कर दें। मजदूरों को चाहिए कि वह सभी गरीबों-मेहनतकशों के साथ पूंजीवाद विरोधी क्रान्तिकारी आंदोलन के साथ आकर खड़े हों। और शोषण की संपूर्ण व्यवस्था के खात्मे को अपने जीवन का लक्ष्य बना लें। केवल तभी यह उम्मीद की जा सकती है कि मजदूरों की आने वाली पीढि़यां खुली हवा में आजादी की सांस ले सकेंगी।
अंधकार का युग बीतेगा, जो लड़ेगा वो जीतेगा!
बिगुल मजदूर दस्ता
नोएडा : 9891993332,
दिल्ली : 011-65976788
*** मजदूरों के क्रान्तिकारी संगठन बिगुल मजदूर दस्ता द्वारा ग्रेजियानो की घटना पर निकाला गया एक पर्चा।
1 comment:
main poonjivad aur varg-sangharsh vagaira ke pher men nahin padna chahta, lekin yah jaroor kahna chahta hoon ki sarkari neetian hamesha se hi doshpoorn rahi hain aur samaaj bhi iske baare me vichar karna nahin chahta, 110 karod logo jahan honge, wahan shram-shakti apne aap hi sasti hoti chali jaayegi, joki ek katu satya hai, 90 pratishat beemariyan to badhti huyi jansankhya hai, jis par lagaam n lagayi gayi to aadmi aadmi ko hi kha jaayega.
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