पोप ने यह साफ कर दिया कि 150 साल पहले प्राणियों की उत्पत्ति से संबंधित डार्विन के अध्ययन के बहिष्कार के लिए चर्च माफी नहीं मांगेगा। पोप ने कहा कि संभवत: हमें पुरानी गलतियों के लिए माफी मांगना बंद कर देना चाहिए, इतिहास कोई ऐसा न्यायालय नहीं है जिसका सत्र हमेशा चलता रहता है।
पोप की परेशानी हम समझ सकते हैं। आखिर बेचारे पोप किन-किन गुनाहों के लिए माफी मांगेंगे। अभी पिछले दिनों ही उन्होंने अमेरिका और आस्ट्रेलिया में चर्च के पुजारियों द्वारा किये गये यौन दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगी।
धर्म युद्धों (क्रूसेड), बलात धर्म परिवर्तन, यहूदियों के प्रति दुर्व्यवहार आदि के लिए चर्च पहले ही प्रभु से क्षमादान मांग चुका है। 1995 में पोप जान पाल द्वितीय ने महिलाओं को सम्बोधित एक पत्र में यह स्वीकार किया कि प्राय: धर्म महिलाओं को हाशिये पर धकेलता रहा है और उन्हें गुलाम बनाता रहा है। इस्लाम के प्रति टिप्पणियों के लिए भी चर्च माफी मांग चुका है। इसके अलावा नाजियों का समर्थन और उन्हें बचाने तक में चर्च ने अपनी भूमिका की आलोचना की।
पोप को लगता है कि कहीं न कहीं जाकर इस पर रोक लगायी जानी चाहिए वर्ना धर्म के सभी गुनाहों के लिए माफी मांगने लगा जायेगा तो कई पोपों की पूरी जिंदगी इसी काम में होम हो जायेगी। अब दुनिया जाने या न जोने पर पोप तो जानते ही हैं कि ईसाई चर्च ने लोगों पर कितने अत्याचार किये हैं इसका अनुमान भी लगा पाना मुश्किल है।
लेकिन विज्ञान के साथ मामला थोड़ा पेचीदा है। अगर धर्म ग्रंथों में लिखी बातें सही हैं और सृष्टि का निर्माण करने वाले भगवान ने ही उन ग्रंथों को लिखा है तब तो उनकी बातें विज्ञान के स्तर पर भी खरी उतरनी चाहिए। लेकिन विज्ञान और धर्म का हमेशा ही 36 का आंकड़ा रहा है। अब अगर धर्म डार्विन और ब्रूनो और गैलिलियो से माफी मांगता है तो उसका आधार ही खिसक जायेगा और फिर धर्म को अपना औचित्य सिद्ध कर पाना मुश्किल हो जायेगा।
सूर्य पृथ्वी का चक्कर नहीं लगाता बल्कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है यह कहने के लिए ब्रूनो को जिन्दा जला दिया गया। यही बात कहने के लिए गैलीलियो पर तमाम तरह के जुल्म किये गये। जोन आफ आर्क को जिन्दा जला दिया गया। टॉमस मुंजर को चर्च का विरोध करने और किसानों को संगठित करने के लिए प्रताडि़त किया गया मार डाला गया और बाकी लोगों को सबक सिखाने के लिए उसके मृत शरीर को खुलेआम प्रदर्शित किया गया। इतिहास में चर्च के पुरोहित विलासियों का सा जीवन व्यतीत करते रहे हैं और हर वह कृत्य अंजाम देते रहे हैं जिनका वह आम जनता के लिए निषेध करते हैं।
प्रश्न यह उठता है कि यदि ब्रूनो और गैलीलियो ने सही बात कही था जिसे आज सारी दुनिया मानती है और यदि बाइबिल में लिखी बातें एकदम सही हैं तो चर्च ने उस समय इन दार्शनिकों को अपनी सत्ता के लिए खतरनाक क्यों माना और अब यदि चर्च अपनी गलती स्वीकार करता है तो इसका यही निष्कर्ष निकलता है कि बाइबिल में लिखी हर बात सही नहीं है और चर्च द्वारा कही गई हर बात को स्वीकार करने से पहले तर्क की कसौटी पर कसा जाना चाहिए।
पर ऐसा करने से धर्म का आधार ही कमजोर हो जायेगा। क्योंकि धर्म का आधार ही अज्ञानता और अतर्कपरकता पर टिका हुआ होता है। इसलिए चर्च ने इसका एक आसान तरीका निकाला और घोषणा कर दी कि चर्च ने कभी डार्विन का विरोध किया ही नहीं था। इसके भी आगे बढ़कर पोप ने यह भ्रम तक फैला दिया कि डार्विन की बातें बाइबिल के अनुरूप ही हैं और दोनों में कोई असंगतता नहीं है।
धर्म की सबसे बड़ी खूबी यही है कि कालान्तर में वह अपने विरोधियों को भी अपने अंदर समाहित कर लेता है बल्कि कभी जिन्हें जिन्दा जला दिया गया था बाद में उन्हें सन्त की उपाधि तक दे दी जाती है। और ऐसा सिर्फ ईसाई धर्म के साथ ही नहीं है सभी धर्म इस मामले में एक दूसरे को टक्कर देते हैं। सभी धर्मों ने मिलकर मानवता पर जितना जुल्म ढाया है उतना शायद ही किसी और कारण से हुआ होगा। सभी धर्म यही शिक्षा देते हैं कि संतोषी बनो, मालिक जो दे उसीमें सन्तोष करो, विरोध मत करो, रोटी मिले या न मिले लेकिन प्रभु के गुण गाओ। अपना शोषण करवाते रहो मगर शोषक के खिलाफ कोई कार्रवाई मत करो। ज्ञानी लोग जो कहते हैं वह करो अपनी अक्ल मत लगाओ, ज्यादा प्रश्न मत पूछो.... और इसके साथ ही धर्म यह धमकी भी देता है कि अगर ऐसा नहीं करोगे तो नर्क जाओगे तो जाओगे... उसके पहले यहीं धरती पर ही तुम्हारा वो हाल किया जायेगा कि मानवता दहल जायेगी। यानी कहा जा सकता है कि धर्म इंसान को न सिर्फ दिमागी गुलाम बनाता है बल्कि अपनी निरंकुश सत्ता का विरोध करने वालों को सबक सिखाने के लिए किसी भी अमानवीय स्तर तक उतर सकता है।
4 comments:
सटीक प्रहार… और धर्म ये भी कहता है कि चन्दा दो… नहीं तो…
बाइबिल तो मैंने पढ़ी नहीं पर क्या आपने पढी है ? जहां तक माफी का सवाल है तो क्या माफी मागंना गलत है । हां आपकी ये बात सही है कि कहां -कहां माफी मागंगे। वैसे समय के साथ ही साथ मुझे लगता कि धर्म में कई सुधार होने चाहिए । जो रूढ़िवादी हो ।
मेरे बाइबिल पढ़ने या न पढ़ने से मेरे पोस्ट में लिखा कोई तर्क खारिज नहीं हो जाता। जी हां माफी मांगना गलत है यदि आप अपनी गलती की वस्तुगत आत्मालोचना नहीं करते और उससे आगे के लिए निष्कर्ष नहीं निकालते बल्कि उन्हीं गलतियों को हूबहू दोहराते रहते हैं। धर्म में सुधार करने से धर्म ठीक नहीं हो जायेगा, मूल बात यह है कि धार्मिक मान्यताओं को भगवान का लेखा मानने के बजाय तर्क की कसौटी पर कसा जाये।
bilkul sahi hai.dharm agyanta ki vajah se hai ye baat bahut hi satik hai.agar in sab faaltu rudhivaadi tariko ko nahi badla gaya to is desh ka future khatre me hai.
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