पाकिस्तानी शायर अफ़जाल अहमद की यह कविता नौजवानों की पत्रिका 'आह्वान' में पढ़ने को मिली...
शायरी मैंने ईजाद की
काग़ज़ मराकशियों ने ईजाद किया
हरूफ़ फीनिशियों ने
शायरी मैंने ईजाद की
कब्र खोदने वाले ने तन्दूर ईजाद किया
तन्दूर पर कब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनायी
रोटी लेने वालों ने कतार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा
रोटी की कतार में जब चींटियां भी आ खड़ी हो गईं
तो फाका ईजाद हुआ
शहतूत बेचने वालों ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिबास बनाये
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहां जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया
फासले ने घोड़े के चार पांव ईजाद किये
तेज़ रफ्तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ्तार रथ के आगे लिटा दिया गया
मगर उस वक्त तक शायरी ईजाद हो चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने खेमा और कश्तियां बनाईं
और दूर-दराज़ मकामात तय किये
ख्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे कांटे की डोर थामने कि लिए
नीलामी ईजाद की
और
ज़बर ने आखि़री बोली ईजाद की
मैंने सारी शायरी बेचकर आग ख़्ारीदी
और ज़बर का हाथ जला दिया
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मराकशी - मोरक्को के मिराकिश शहर के निवासी
फीनिशी - फीनिश के निवासी
महलसरा - अन्त:पुर, हरम
खेमा - तम्बू
ख्वाज़ासरा - हरम का रखवाला हिजड़ा
ज़बर - अत्याचार
2 comments:
बड़ी ही नायाब चीज लाये हैं-क्या कहें!!! कितनी बार इसे पढ़ना पड़ेगा-कुछ कुछ समझने के लिए.
बहुत आभार.
aag kharidne ke liye badhai, iski lapten oonchi aur oonchi jayen, ye ummeed karta hoon.
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