Thursday, October 16, 2008

पूंजीपतियों की चिंता में दुबली हुई जाती सरकारें...

आजकल बेल आऊट की बहार आई हुई है। हर कंपनी अपने को कंगाल घोषित करने पर अमादा है। बाजार के खेल में बड़े-बड़े महारथी धराशायी हो चुके हैं और अभी कई लाइन में लगे हैं। कल तक जो लोग बाजार को एकदम स्‍वतंत्र कर देने की वकालत करते नहीं अघाते थे और जो यहां तक कहते थे कि सरकार खुद ही एक समस्‍या है और उसे बाजार के खेल में दखलन्‍दाजी नहीं करनी चाहिए अब दोनों हाथ जोड़कर सरकार से भीख मांग रहे हैं कि माई-बाप हमें बचाओ, हमें पैसे दो, हम कंगालों के आगे रोटी फेंको वर्ना हम तबाह हो जाएंगे, बर्बाद हो जाएंगे, लुट जाएंगे, पिट जाएंगे,......ये हो जाएगा, वो हो जाएगा...।
आप सोच रहे होंगे कि भाई इसमें दिक्‍कत क्‍या है। ये तो वही पूंजीपति हैं जो अपने कामगारों का खून-पसीना एक किए रहते हैं। जब चाहे नौकरी पर रखते हैं जब चाहे निकाल बाहर करते हैं। बैंको से अरबों करोड़ों का कर्ज लेकर चुकाते नहीं हैं। किसानों की जमीनें कब्‍जा करते हैं। टैक्‍स की चोरी करते हैं और स्विस बैंकों में रुपया जमा करवाते हैं। इंसानों का खून और किडनी बेचते हैं और यहां तक कि इन्‍होंने प्रकृति का भी विनाश कर डाला है। सभ्‍यता, संस्‍कृति और इंसानियत तक को बिकाऊ माल बना दिया है। औरत को उपभोग की वस्‍तु बना दिया है और बच्‍चों तक को अपनी वासना का जकड़ में ले लिया है। मुनाफे ही हवस में जो इंसान भी नहीं रह गए हैं ऐसे धनपशु आज अगर अपने ही खेल में पिट रहे हैं तो इनपर रहम किया भी जाए तो क्‍यों।
पर सरकार ऐसा नहीं सोचती। सरकार चाहे अपने देश के लोगों को दो जून की रोटी, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और पेयजल भी न उपलब्‍ध करवा सके पर पूंजीपतियों के लिए अपने खजाने खोलने में सरकार एक मिनट की भी देर नहीं करेगी। अमेरिका की सरकार अपने देश की एक कंपनी को बचाने के लिए जितने डॉलर खर्च कर रही है उतने में पूरे विश्‍व को कई साल तक खाना खिलाया जा सकता है। 5 साल से कम उम्र के लगभग आधे बच्‍चे कुपोषण के शिकार हैं पर सरकार को उनकी चिंता नहीं है। देश की आधी आबादी भूखे पेट सोती है पर सरकार को उसकी भी चिंता नहीं है। किसान आत्‍महत्‍याएं कर रहे हैं, मजदूर किडनियां बेच रहे हैं, औरतें अपनी अस्मिता बेचने को मजबूर हैं और बच्‍चों से उनका बचपन छीना जा रहा है पर सरकार को इन सबकी भी चिंता नहीं है। सरकार को चिंता है तो बस उन धनपशुओं की जिनकी जीवनशैली पर इस आर्थिक मंदी के बावजूद कोई असर नहीं पड़ने वाला है। उनकी ऐय्याशियां कम नहीं होने वाली हैं। उनके गुनाह कम नहीं होने वाले हैं।
अगर अब भी आप नहीं समझ पाए हैं कि सरकार लोगों की नहीं पूंजीपतियों की चिंता क्‍यों करती है तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि 'सरकार पूंजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी का काम करती है।' लोगों की चिंता करना उसका काम ही नहीं है, सरकार का जन्‍म ही इस काम के लिए नहीं हुआ है। सरकार के लिए पूंजीपतियों का हित सर्वोपरि है। उनके हित के लिए सरकार कभी बाजार खोल देती है तो कभी तमाम तरह की पाबन्दियां लगाती है। कभी उन्‍हें लूट-खसोट की पूरी आजादी देती है तो कभी उनके लिए अपने खजाने खोल देती है। सीधी-सादी चीजों को कानूनों के जंजाल में इस तरह उलझाती है कि पैसे वाला चाहे तो कानून अपनी जेब में रखकर घूम सकता है और गरीब बेगुनाह होकर भी पूरी जिंदगी हवालात में गुजार सकता है।
पूरे विश्‍व के स्‍तर पर आई मौजूदा आर्थिक मंदी ने नंगे तौर पर यह दिखा दिया है कि सरकार की एकमात्र चिंता पूंजीपतियों की सेवा करना है, उनके हितों की सुरक्षा करना है। आम जनता को भी अब यह समझ लेना चाहिए कि ऐसी सरकार के भरोसे उनकी नैय्या पर होने वाली नहीं है। शहीदे-आजम भगतसिंह की एक-एक बात आज सही साबित हो रही है। आज भगतसिंह के विचार पहले से भी कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं।

4 comments:

Anonymous said...

achchha likha hai. ekdum sahi baat hai.

Hari Joshi said...

यथार्थ यही है कि सरकार के दिखाने वाले दांत अलग और खाने वाले अलग। वोट के लिए जनता जनार्दन और हित साधने के लिए वह लोग जिनके धन-वल पर चुनावी जंग लड़ी जाती है। इसलिए हमेशा पूंजीपतियों का ही हित सोचा जाता रहा है और जाता रहेगा।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अब पूंजीवाद को समाजवाद चाहिए।

Dr. Amar Jyoti said...

बिलकुल सही बात।