दिल्ली और नोएडा-गाजियाबाद के सामाजिक सरोकार रखने वाले सभी पत्रकारगण तपीश मेंदोला के नाम से परिचित होंगे। अगर आपको याद न हो तो बता दें कि पिछले दो-तीन वर्षों के दौरान इसी नौजवान सामाजिक कार्यकर्ता के अथक प्रयासों की बदौलत दिल्ली, नोएडा और गाजियाबाद में बड़े पैमाने पर गरीबों के बच्चों के गुमशुदा होने और पुलिस-प्रशासन की तरफ से उन्हें कोई मदद न मिलने उल्टा लापता बच्चों के गरीब मां-बाप को ही डराने, धमकाने और अपमानित करने की घटनाएं मीडिया की सुर्खियां बनीं। अनेक अखबारों और न्यूज चैनलों ने तपिश का इंटरव्यू भी लिया और दिखाया और कईयों ने उनकी मदद से लेकिन उनका या उनके संगठन नौजवान भारत सभा का नाम लिए बगैर प्रस्तुतियां कीं।
तपिश और नौजवान भारत सभा तथा सहयोगी संगठनों के प्रयासों की बदौलत गुमशुदा बच्चों के मामले पर दिल्ली हाइकोर्ट में सुनवाई चल रही है और कोर्ट ने पिछली सुनवाइयों में पुलिस-प्रशासन को काफी लताड़ भी पिलाई है।
फिलहाल तपिश और उनके दो और नौजवान साथी एक अन्य मजदूर के साथ जेल में बंद हैं, उनका जुर्म यह है कि उन्होंने एक बेहद मानवीय और कानूनी मसले पर कानूनी और लोकतांत्रिक दायरे में रहते हुए गोरखपुर के मजदूर आंदोलन का साथ दिया और उसमें अग्रणी भूमिका निभाई। कदम कदम पर फैक्ट्री मालिकों और जिला प्रशासन द्वारा विश्वासघात करने के बावजूद ढाई तीन महीने से चल रहे इस जुझारू आंदोलन में मजदूरों की तरफ से कोई उकसावे या हिंसा की घटना अभी तक सामने नहीं आयी है, हालांकि मालिकों और प्रशासन की तरफ से इस तरह की गतिविधियां लगातार जारी रही हैं। मालिकों ने अपने गुंडों के साथ मिलकर मजदूरों और उनके नेताओं पर जानलेवा हमला भी किया जिसमें स्वयं एक फैक्ट्री के मालिक ने रिवाल्वर से मारकर मारकर एक नौजवान प्रमोद का सिर फोड़ दिया। पर लोकत़ंत्र का खेल यह कि स्वयं इन नौजवानों और मजदूरों के खिलाफ ही कई प्रकार की धाराओं में केस दर्ज कर लिया गया।
आंदोलन के दबाव में आने के बाद जिला प्रशासन द्वारा बुलाई गई 12 वार्ताएं फैक्ट्री मालिकों के असहयोग या अनुपस्थिति के कारण असफल सिद्ध हो चुकी हैं। इसके बाद अनशन पर बैठे मजूदरों को डराने धमकाने का पुलिसिया नाटक लगातार चल रहा था कि 15 अक्टूबर को बातचीत के बहाने मजदूर आंदोलन के तीन अग्रणी साथियों तपिश, प्रशांत और प्रमोद को प्रशासन ने बातचीत के बहाने एडीएम के कार्यालय बुलाया गया।
प्रशासन की नेकनीयत पर भरोसा करके वार्ता के लिए पहुंचे तीनों नौजवानों के साथ एडीएम के कार्यालय में सिटी मजिस्ट्रेट, एडीएम सिटी और कैंट थाने के इंस्पेक्टर और कुछ और पुलिस वालों ने बेरहमी से मारपीट की। फैक्ट्री मालिकों के लठैत की भूमिका में आ चुके प्रशासन ने लोकतंत्र का नकाब उतारकर पूरी नंगई के साथ बेरहम सलूक किया। बताने के बावजूद ह्रदय रोगी प्रशांत पर भी इन सरकारी दरिंदों ने अपना कहर बरपा किया और 17 अक्टूबर की शाम तक उन्हें डाक्टरी मदद नहीं दी गई थी। हालांकि पुलिस उनपर कोई गंभीर धारा नहीं लगा सकी बावजूद इसके उन्हें जमानत नहीं दी गई है और 22 अक्टूबर तक के लिए जेल भेज दिया गया है।
मुद्दा यह है कि अपने संविधानप्रदत्त जायज और बेहद छोटी मांगों के लिए भी यदि ऐसी ज्यादतियों का शिकार होना पड़े तो शायद शरीफ नागरिकों के सोचने का भी वक्त आ गया है कि यह लोकतंत्र है या निरंकुश तानाशाही। यह बात सिर्फ तपिश और उनके साथियों या गोरखपुर के मजदूर आंदोलन की नहीं है बल्कि यही हाल पूरे देश में है और 99.9 प्रतिशत मामलों में यही होता है। आज अगर हम चुप बैठे तो कल को यही हमारे साथ भी होगा और तब कोई बोलने वाला नहीं होगा।
मीडिया के सामाजिक सरोकारों पर बेहद गंभीर चर्चाएं करने वाले साथियों से मैं कहना चाहूंगा कि अब उससे आगे बढ़कर कुछ करने का समय आ गया है। सामाजिक सरोकार रखने वाला एक जुझारू पत्रकार अपने दो और नौजवान साथियों और एक मजदूर साथी के साथ जेल में बंद है क्योंकि उसने वह किया जो हम सबको करना चाहिए। सामाजिक सरोकार रखने वाले पत्रकारों-बुद्धिजीवियों की विलुप्त होती प्रजाति के जो लोग भी शेष बचे हैं उनसे मेरी अपील है कि इस मुद्दे पर आगे आएं और अपना सहयोग-समर्थन दें।
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सत्यम : 9910462009 ईमेल: satyamvarma@gmail.com
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3 comments:
इस घटना की जितनी निंदा की जाए कम है।
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हाजिर है एक आसान सी पक्षी पहेली।
भारतीय न्यूक्लिय प्रोग्राम के जनक डा0 भाभा।
पूरा देश ही नव साम्राज्य वाद की गिरफ्त में आ गया है .धन ,बाहुबल,प्रशासन,राजनीती सभी को खरीद चूका है.सभी एक हो गए हैं . हम अंग्रेजों से भी ज्यादा गुलामी के दौर में पहुंचाए जा रहे हैं . पर क्या किया जाये कैसे किया जाये ? किस तरह किया जाये ? अपनी बलि दे दी जाये या naxalayiton की तरह बलि लेना शुरू कर दिया जाये .इस समाज में किसी का भी आसरा नहीं दीखता .मैं स्वयं किंकर्तव्यविमूढ़ता महसूस करता हूँ .विवेक हीनता के सामने आवाज़ कैसे और कहाँ तक पहुंचाई जाये ?
यह बहुत चिंता का विषय है।
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परा मनोविज्ञान-अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
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