परम आदरणीय संविधान निर्माताओ,
सुना था कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है। हम सोचते थे बड़ा होगा तो भारी-भरकम भी होगा। मगर कितना भारी होगा इसका अहसास चन्द दिन पहले ही हो सका। इसमें लिखित कानून के एक छोटे से उपवाक्य और उसे लागू करने वाले एक अदना से कारिन्दे ने हमें संविधान की ताकत का ऐसा अहसास कराया कि जिन्दगी भर के लिए उसका भय और उसके प्रति श्रद्धा हमारे अन्तस्तल में समा गयी।
लोग कहते थे खुदा की इज्जत करो या न करो मगर कानून की इज्जत करो। कानून से डरो। हम सोचते थे कानून क्या हिटलर है जिससे डरने की जरूरत हो। पर हम नादान थे। हमें माफ करना।
पाश कहते थे 'यह किताब मर गई है'। हमने कभी फिक्र ही नहीं किया कि मरी है या जिन्दा है। मगर बुलाओं पाश को और हमें दिखाकर पूछो कि अगर यह किताब मर गई है तो खाकी रंग के कपड़े में इतना गुरूर कहां से आया।
हे श्रेष्ठजनो, हे महापुरुषो।
अगली बार जब हम परीक्षा में बैठेंगे और हमसे संविधान के बारे में पूछा जाएगा तो हम प्रत्यक्ष अनुभव से अर्जित समस्त संवेदना और आवेग के साथ उसका गुणगान करेंगे। हम उस एक-एक बुनियादी अधिकार की सोदाहरण व्याख्या करेंगे जिसकी अमिट छाप उस सर्वशक्तिमान डण्डे ने हमारी पीठ पर उकेरी है। हम उस डण्डे के आभारी है और आपके भी जिन्होंने उस डण्डे में इतनी ताकत सौंपी। हे परमपूज्यो, संविधान प्रदत्त शक्ति से अघाए-बौराए और कानूनी मान्यता के घमंड में चूर उस डण्डे की महिमा का बखान हम शब्दों में नहीं कर सकते। हम नादान हैं, हमारे पास तो सिर्फ अहसास हैं। और कानून अहसास नहीं शब्द मांगता है।
हे महाऋषियो,
हम तो आपके रचित संविधान के टेढ़े-मेढ़े वाक्यों को पढ़ भी नहीं सकते, समझना तो दूर की बात है। हमें तो उनके कॉमा और फुलस्टॉप से भी डर लगता है। पता नहीं कब कौन सा कॉमा और फुलस्टॉप हमें फिर हवालात की सैर करा दे। और हम तो शिकायत भी नहीं कर सकते। क्योंकि तुमने हमारे ही द्वारा इस संविधान को हमें 'अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित' करवा दिया है। अब अगर हमारा ही कानून हमारे ऊपर लागू किया जा रहा है तो हम शिकायत करें भी तो किस मुंह से और किससे। यह दीगर बात है कि संविधान को हमसे 'अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित' करवाने से पहले कभी हमसे और हमारे बाप-दादाओं से पूछा भी नहीं गया। हमें तो बताने की जरूरत भी नहीं समझी गई। हमें तो यह मालूम करने के लिए हवालात जाना पड़ा। तुम कितने दूरदर्शी थे महापुरुषों, तुम्हें हवालात की जरूरत का अहसास उसी समय हो गया था।
हे ज्ञानियों में ज्ञानी, परमज्ञानी बाबा साहेब अंबेडकर,
आपने कहा था कि यह दुनिया का सबसे बढि़या संविधान है। अगर यह संविधान भी लोगों को ठीक नहीं कर सकता तो फिर लोगों में ही कोई खराबी है। क्योंकि संविधान में खराबी की गुंजाइश है ही नहीं।
बाबा साहेब आपने कहा। हमने माना। साठ साल से आपका कहा रटते रहे। अब तो विश्वास भी हो गया। हमारी पीठ को ही कोई चुल्ल उठी होगी। वरना डंडे में खराबी की कोई गुंजाइश ही कहां है। डण्डे के लिए तो सब बराबर हैं। समानता के अधिकार की असली व्याख्या तो पुलिस का डण्डा ही कर सकता है। वह बरसता है तो बस बरसता ही चला जाता है जबतक कि कानून का राद्दा न जमा दे। बस नहीं बरसता तो उन लोगों पर जिनके पोस्टर लगते हैं। जिनकी मूर्तियां बनती हैं। जो डण्डे को नाप सकते हैं, तौल सकते हैं, खरीद और बेच सकते हैं।
हे परम श्रद्धेय आधुनिक परमपिताओ,
हम अज्ञानियों को क्षमा करना। हमारे अज्ञान के कारण ही तो संविधान बनाने में हमारी राय नहीं ली गई। ज्ञान खरीदने की कूव्वत रखने वाले 15 प्रतिशत लोगों ने यह पवित्र ग्रन्थ हमें सौंपा है। हमें इस जिम्मेदारी को समझना है। इसका बोझ अपने कन्धे पर उठाना और उठाये रखना ही हमारा परम कर्तव्य है। हमारे उद्धार का और कोई मार्ग नहीं है। बाबा साहेब की उठी हुई उंगली इसी मार्ग की तरफ इशारा करती है।
परम श्रद्धा और अन्धभक्ति के साथ,
-- चार अज्ञानी
(उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के पोस्टर को बदरंग करने के कथित आरोप में एक पुलिस अधिकारी ने चार बच्चों को कई दिन तक हवालात में रखा था जबकि उनकी परीक्षाएं चल रही थीं। असलियत यह थी कि अपने किसी रिश्तेदार के बच्चे का उस स्कूल में दाखिला न होने से जिसके वे चारों बच्चे छात्र थे, अधिकारी महोदय ने खुन्नस निकालने के लिए यह कार्रवाई की थी। पुलिस अधिकारी की इस अनैतिक कार्रवाई से संविधान के किसी भी नियम कानून का उल्लंघन नहीं हुआ और उसपर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई (जहां तक मुझे ज्ञात है)। प्रश्न यह है कि हमारे देश का यह कैसा संविधान है जो इसप्रकार की हरकत होने देता है। क्या इसकी कोई गारंटी है कि आगे से ऐसा नहीं होगा। संविधान के पास इन बच्चों को देने के लिए क्या स्पष्टीकरण है।)
1 comment:
जय जी, अलग तरह की पठनीय सामग्री। बधाई।
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