Saturday, October 2, 2010

बुर्जुआ राज्‍य के कानून में धर्मनिरपेक्षता और आस्‍था की खिचड़ी

पिछले दिनों अमेरिका, यूरोप से लेकर भारत तक घटी घटनाओं ने बुर्जुआ राज्‍यों की धर्मनिरपेक्षता का नकाब उतार फेंका है। चाहे क़ुरान को जलाने का मामला हो या वर्ल्‍ड ट्रेड सेंटर की भूमि पर मस्जिद बनाने का मसला हो, बुर्जुआ राज्‍यों का पक्षपात और कानून की विसंगतियां खुले रूप में सामने आई हैं। पर इस मामले में भारत ने बाकी देशों को पीछे छोड़ दिया है।

रामजन्‍मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर तीन जजों की खंडपीड ने जो फैसला सुनाया है और जिस तरह से इस फैसले पर पहुंचा गया है उससे पता चलता है कि भारतीय न्‍याय व्‍यवस्‍था किस तरह काम करती है। तथयों की जिस तरह अनदेखी करके आस्‍था को आधार बनाकर फैसला किया गया है और इतिहास की गलतियों को ठीक करने का जिस तरह प्रयास किया गया है आने वाले भविष्‍य के लिए उसके गहरे निहितार्थ हो सकते हैं। जिस तरह रामलला को एक पक्ष बनाकर न्‍यायालय ने जमीन का एक टुकड़ा उन्‍हें या उनके प्रतिनिधियों को सौंपा है क्‍या उसी तर्क पर पूंजीवादी भारतीय राज्‍य की न्‍याय व्‍यवस्‍था आदिवासियों के जंगलों, नदियों और पहाड़ों को भी राष्‍ट्रीय-बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों के चंगुल से छुड़ाकर उन्हें सौंपेगी। निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि मुनाफाखोर पूंजीवादी राज्‍य किसी भी हालत में ऐसा नहीं होना देगा।

भारत में यूं तो जिसके पास पैसा और पॉवर है वह कानून को अपनी जेब में रखकर घूम सकता है लेकिन भारत में विधि का शासन चलता है यह इस बात से भी पुष्‍ट होता है कि भगवान श्री रामलला को भी अपनी तथाकथित 'जन्‍म‍स्‍थली' पर अधिकार प्राप्‍त करने के लिए कानून की शरण में जाना पड़ा। आखिरकार सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वज्ञाता भगवान को मृत्‍युलोक के तुच्‍छ प्राणियों की अदालत में अपील करनी पड़ी और सिर्फ अपील ही नहीं करनी पड़ी नाबालिग होने के कारण उन्‍हें एक मानवमात्र का अभिभावकत्‍व भी स्‍वीकार करने पर मजबूर होना पड़ा जो निश्चित ही कोई अवतार नहीं है। मुसलमानों के साथ दिक्‍कत यह है कि उनका धर्म इसकी इजाजत नहीं देता कि वे अपने खुदा को इंसान की अदालत में पेश करें। शायद ऐसे किसी अलौकिक सम्‍बल की कमी भी एक कारण हो कि यह फैसला उनके खिलाफ चला गया।

भारत भूमि चमत्‍कारों की भूमि हैं। यहां कुछ भी असम्‍भव नहीं है। यहां किसी भी धार्मिक चीज में कोई विसंगति नहीं है। हर विसं‍गति के लिए उससे भी अधिक विसंगतिपूर्ण समाधान मौजूद है। यहां व्‍यक्तिगत लाभ के लिए किसी भी चीज को धार्मिक जामा पहनाकर मान्‍यता दी जा सकती है। यहां चंद मिनटों में भगवान को इंसान और इंसान को भगवान बनाया जा सकता है, कुकृत्‍य को सुकर्म बनाया जा सकता है पाप को पुण्‍य बनाया जा सकता है। बस देखना यह होता है कि करने वाला व्‍यक्ति कौन है। भारतीय राज्‍य की धर्मनिरपेक्षता की जमीन कितनी पोली है यह पूरा मसला उसका बखान करता है।

3 comments:

Unknown said...
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Unknown said...

jaise ki bujurgo ne kaha hai ki there is nothing right or wrong in this world it is just your preception ...... es liye agar judment aap ke paksh me hai tou aap kahenge ki judgement sahi hai aur agar judgement aap ke vipaksh me jae tou aap kahenge ki judgement wrong hai........

aur teesre paksh wale judment pe bahas kar apna sawarth saadhte rahte hai......
raam janambhumi ek vivdh tha hai jis se ubarna zarooori tha .... yeh ek sattelement ho sakta hai.... antim judgement nahi...

sabhi insan pahle cave me hi rahte the .... kuch ne oudhyagik kranti ki aur aage bade ..... is duniya me har taqatwar insan ne kamzor ko dabaya hai , aur kamzor insan bhi jab taqatwar ban jata hai tou woh bhi kamzor pe zulam kar ta hai...
hain sarkar ki zawabdari banti hai ki kamjor ki raksha kare us ke heeton ko surakshit rakhe......
lakin agar development ke liye jungle mese sadak banani ho tou jangal katne padenge .......

vikas ke liyeh kisi ko tou qurbani deni hi padti hai....shayad prakrati ka vidhan yahi hai.....
dhirendra

जय पुष्‍प said...

धीरेंद्र जी,
बुजुर्गों की सभी बातें हुबहू स्‍वीकार भी नहीं कर लेनी चाहिए। बुजुर्गों ने ही कहा है कि 'लो अतीत से उतना ही जितना पोषक है, जीर्ण शीर्ण का मोह मृत्‍यु का ही द्योतक है'।

अगर सही गलत का फैसला व्‍यक्तियों के परसेप्‍शन के आधार पर किया जाने लगे तो अदालत की जरूरत ही क्‍या है। सबकुछ छुट्टा छोड़ दिया जाए जो जीतेगा उसको अपने परसेप्‍शन के हिसाब से सही मान लिया जाएगा।